Please agree to the terms and Conditions
Note:
- Please carry one of your valid Identity Proof (Aadhar Card / Passport / PAN Card) while coming for the event.
- The responsibility to carry valid photo id’s of the booking member and his family shall be on the primary member.
- If GST bill is required by the booking member, the same shall be informed in advance and shall be issued by the Hotel and other agent directly to the booking member only.
Registration Fee Refund Policy:
- 100% refund will be provided.
- Bank details will be collected, and refunds will be processed together after the last date of registration.
Glorious Past of Arya Samaj
ओ३म्
आर्य समाज: वेदज्ञान और शुद्ध आचरण का प्रकाश
“आर्य समाज वेदज्ञान से युक्त शुद्ध आचरण करने वाले मनुष्य का निर्माण करता है।”
समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए शुद्ध ज्ञान और शक्ति से संपन्न मनुष्यों का निर्माण आवश्यक है। महाभारत युद्ध के बाद वेदों के विलुप्त होने से अज्ञान और अंधविश्वास का प्रसार हुआ। यदि वेदज्ञान व्यापक रूप से उपलब्ध होता, तो संसार में पाखंड और कुरीतियाँ नहीं फैलतीं। वैदिक काल में सत्य और विज्ञान पर आधारित एक ही जीवन-पद्धति थी, और आर्य समाज उसी परंपरा का अनुसरण करता है।
ऋषि दयानंद सरस्वती और सत्य का प्रचार
ऋषि दयानंद सरस्वती ने वेदों की मान्यताओं का परीक्षण कर उन्हें सत्य पाया और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना की, जिसमें सत्य और असत्य का स्पष्ट विवेचन किया गया है। उनके सभी ग्रंथ अंधविश्वासों से मुक्त, तर्कसंगत और विद्या पर आधारित हैं। आर्य समाज सत्य और न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए समाज सुधार के कार्य करता है।
आर्य समाज वेदों, वैदिक साहित्य और सत्यार्थ प्रकाश के आधार पर मनुष्य का निर्माण करता है। यह वेदाधारित उच्च चारित्रिक मापदंडों को प्रोत्साहित करता है और मनुष्यों को ईश्वर तथा आत्मा का सत्य ज्ञान उपलब्ध कराता है, जिससे अज्ञान दूर होता है और लोग धर्म, भक्ति और सत्कर्मों में प्रवृत्त होते हैं।
स्वदेशी परंपरा और समाजोत्थान
आर्य समाज स्वदेशी संस्कृति और परंपराओं को अपनाने का समर्थन करता है। यह वेदविरोधी शक्तियों और धर्मांतरण जैसी प्रवृत्तियों का विरोध करता है। महापुरुषों की जयंती मनाने की परंपरा को बढ़ावा देकर समाज में जागरूकता लाने का कार्य करता है।
ऋषि दयानंद: विश्वकल्याण के पथप्रदर्शक
ऋषि दयानंद ने वेदों के पुनरुद्धार और प्रचार का कार्य विश्वकल्याण की भावना से किया। उन्होंने सत्य की खोज में अपनी मान्यताओं को भी तर्क की कसौटी पर परखा। काशी में 1869 में मूर्तिपूजा के विरुद्ध उनके शास्त्रार्थ ने वेदविरुद्ध मान्यताओं को चुनौती दी। उन्होंने अनेक शास्त्रार्थ किए और सत्य की स्थापना की।
उनके विरोधियों ने उन्हें लगभग 18 बार विष देने का षड्यंत्र रचा, लेकिन योगबल से वे उसे निष्प्रभावी कर देते थे। परंतु 1883 में जोधपुर में दिए गए विष का प्रभाव वे नहीं रोक सके, जिससे दीपावली के दिन 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु से समाज और मानवता को जो क्षति हुई, वह अपूरणीय थी।
आर्य समाज और स्वतंत्रता संग्राम
आर्य समाज का स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। लाहौर आर्य समाज के एक सम्मेलन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को दस हजार रुपये की भेंट दी गई और गुरुकुल कांगड़ी के ब्रह्मचारी उनकी सेना में शामिल होने को तैयार थे। नेताजी ने आर्य समाज को अपनी प्रेरणा बताते हुए कहा कि “महर्षि दयानंद द्वारा दिया गया स्वदेशी का संदेश ही भारत की स्वतंत्रता का मूलमंत्र बना।”
महर्षि दयानंद की शिक्षाओं का प्रभाव
स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार और वेदों के प्रचार में महर्षि दयानंद का योगदान अतुलनीय है। उनके विचारों ने कई क्रांतिकारियों को प्रेरित किया, जैसे—
• राम प्रसाद बिस्मिल
• स्वामी श्रद्धानंद
• भगत सिंह
• लाला लाजपत राय
• बाल गंगाधर तिलक
उन्होंने स्त्रियों, शूद्रों और समाज के उपेक्षित वर्गों को वेद अध्ययन का अधिकार दिलाया और जातिवाद, अंधविश्वास तथा अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया।
महापुरुषों के विचार
• लोकमान्य तिलक: “स्वराज्य और स्वदेशी का मंत्र सर्वप्रथम दयानंद ने दिया।”
• नेताजी सुभाष चंद्र बोस: “महर्षि दयानंद आधुनिक भारत के आद्यनायक थे।”
• स्वामी श्रद्धानंद: “सत्य को अपना ध्येय बनाएँ और महर्षि दयानंद को अपना आदर्श।”
विद्या का महत्व
मनुष्य को विद्या और गुणों से युक्त मन को अपनाना चाहिए, जिससे वह निरंतर ज्ञान और प्रकाश की प्राप्ति कर सके। विद्या से मनुष्य को सही-गलत की पहचान होती है और वह अपने जीवन में उचित निर्णय ले सकता है।
“जैसे सूर्य अपनी किरणों से अंधकार को दूर करता है, वैसे ही विद्या का प्रकाश अज्ञान और असत्य को नष्ट करता है।”
ऋतुएँ समय के साथ परिवर्तन लाती हैं, और उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने ज्ञान को बढ़ाते रहना चाहिए और उसे अपने आचरण में उतारना चाहिए। जो व्यक्ति विद्या और ज्ञान का अनुसरण करता है, वही सच्चे अर्थों में उन्नति करता है।
संक्षेप में, आर्य समाज का उद्देश्य वेदज्ञान के माध्यम से समाज में जागरूकता लाना, अंधविश्वासों को दूर करना, समाज सुधार करना और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देना था। महर्षि दयानंद की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और समाज के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।